गोदान हिन्दी के महानतम उपन्यासों में से एक है। इस एक उपन्यास में उस समय के ग्रामीण जीवन की लगभग सारी समस्याओं को बेहद जीवंतता के साथ प्रस्तुत किया गया है। किसानों के ऊपर बढ़ते कर्ज, समाज की झूठी मरजाद की रक्षा, लगान की व्यवस्था, जातधरम का आडंबर, समाज में महिलाओं की स्थिति, पुलिस और मुकदमें से लोगों में व्याप्त भय, ये सभी सामाजिक समस्याएं तो उपन्यास में प्रमुखता से हैं ही साथ ही एक नायक का कुछ छोटी-मोटी चोरी या बेईमानी कर लेना, पिता-पुत्र के बीच पीढ़ियों की सोच में टकराव, अनैतिकता का भास होते हुए भी कुछ प्रसंगों में किसी स्त्री-पुरुष के बीच आकर्षण हो जाना, ये कुछ ऐसे मनोवैज्ञानिक पहलू हैं जिसे प्रेमचंद ने बहुत ही बारीकी से उजागर किया है।
यह उपन्यास प्रेमचंद का अंतिम प्रकाशित
उपन्यास है; और इसे पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन का
अनुभव, गांधीवादी विचारधारा का कुछ अंश, हँसी-विनोद और जीवन के तमाम संघर्षों को
एक साथ एक कसे हुए कथानक के साथ प्रस्तुत कर दिया है। हालाँकि इस उपन्यास को
ग्राम्य जीवन का महकाव्यातकम उपन्यास कहा गया है, लेकिन इसमें मिस्टर मेहता, राय
साहब, ओंकारनाथ, मिस्टर खन्ना और मिस मालती आदि कुछ चरित्रों के माध्यम से शहरी
चकाचौंध और तत्कालीन शहरी जीवन में व्याप्त आपाधापी का भी विशद चित्रण देखने को
मिलता है।
भाषा-शैली के लिहाज से यह उपन्यास अपने
स्वभाव के अनुसार ही मालूम होती है। इस उपन्यास में आम जन की कहानी है और भाषा भी
बिल्कुल आम जन की ही है। उपन्यास में लगभग सारे संवाद काफी यातार्थपरक हैं; लेकिन
कुछ संवाद जैसे —— “एक मजदूर अमीर होता है तो वो किसान बनता है और जब एक किसान
गरीब होता है तो वो मजदूर बन जाता है।” ऐसे हैं जो कहानी को और गति देते हैं
घटनाओं को जीवंत बनाते नजर आते हैं।
चरित्रों की नजर से उपन्यास को देखा जाए तो
उपन्यास की परिस्थियों के अनुसार सबसे मजबूत चरित्र धनिया का है। धनिया का बेटा
गोबर भी आने वाली पीढ़ी में बदलाव के संकेत देता हुआ दिखाया गया है। मिस मालती स्त्री
शशक्तिकरण की प्रतीक के रूप में जान पड़ती हैं, वहीं मिस्टर खन्ना की पत्नी को एक
आदर्श भारतीय नारी की तरह प्रदर्शित किया गया है। होरी मरजाद की रक्षा करने के लिए
अपनी जान तक भी दे सकता है; वहीं दातादीन, झींगुरी सिंह आदि कुछ ऐसे साहूकार हैं, जिन्हें
किसानों का रक्त चूसने के बाद भी चैन नहीं पड़ता। उपन्यास को पढ़ते हुए ऐसा जान पड़ता
है मानो समाज में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति का कोई न कोई प्रतिनिधि उपन्यास में मौजूद
है।
एक मजबूत कथानक, उत्कृष्ट चरित्र योजना, घटनाओं
का क्रमिक विकास, चुस्त संवाद, यथार्थ से नजदीकी आदि उपन्यास के प्रत्येक तत्व के लिहाज
से यह उपन्यास श्रेष्ठ जान पड़ता है। अगर आपने अभी तक यह उपन्यास नहीं पढ़ा है और पढ़ना
चाहते हैं तो कमेंन्ट में बता सकते हैं।
No comments:
Post a Comment