जब से सोशल मीडिया हरेक हाथ में पहुँच गया है, तब से कौन सा
व्यक्ति कब वायरल होकर प्रसिद्ध हो जाए, यह कहा नहीं जा सकता है। ऐसा ही एक व्यक्ति
महाकुंभ 2025 शुरू होने के कुछ दिन बाद काफी ज्यादा वायरल हो गया है। IITian बाबा,
जिनका असली नाम अभय सिंह है; हरियाणा के रहने वाले हैं और आईआईटी बॉम्बे से ग्रेजुएट
हैं। उनके पेरेंट्स ने बताया कि उन्हें कनाडा में छत्तीस लाख का पैकेज मिल रहा था,
लेकिन वो घर-परिवार और पैकेज सबकुछ छोड़कर कहीं चले गए। एक साल तक उनका कुछ पता
नहीं चल और अब एक साल बाद वो एकाएक कुम्भ में फेमस हो गए हैं।
हम यहाँ खबरों की बात नहीं करेंगे। कुछ बातें हैं, जिनपर
मुझे लगता है कि बात करना जरूरी है। पहली बात कि उन्होंने घर क्यों छोड़ा? उन्होंने
सांसारिक जीवन क्यों छोड़ा? क्या वो हमेशा नशे में रहते हैं? उनके कुछ इंटरव्यू से
उनका अभी का क्या विजन नजर आता है? अगर वो बाबा नहीं बनते तो क्या उनका समाज में योगदान
ज्यादा होता या फिर कम? क्या अभय सिंह बाकी बाबाओं से अलग हैं? इन सारे प्रश्नों
का जवाब हम एक-एक कर जानने की कोशिश करते हैं।
सबसे पहला प्रश्न कि उन्होंने अपना घर और सांसारिक जीवन
क्यों छोड़ा? उनके कुछ इंटरव्यू से पता चलता है कि उनके पिता उनकी माँ को बहुत
ज्यादा पीटते थे। वो अपनी माँ के लिए कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। कुछ समय बाद
उन्हें पता चला कि उनकी किसी महिला मित्र के साथ भी उनका पति ऐसा ही दुर्व्यवहार
करता है और वो इन सबके लिए कुछ नहीं कर सकते। इतनी पढ़ाई, इतना ज्ञान होने के
बावजूद वो कुछ नहीं कर पा रहे थे। उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे जीवन में सबकुछ बेकार
की छीजे हैं। अगर किसी के साथ भी ऐसी स्थिति या जाए तो उसे यही लगेगा कि जीवन में
सबकुछ निरर्थक है। लेकिन घर और संसार का त्याग कर देना एक बहुत बड़ा फैसला है; यही
मुश्किल निर्णय उन्होंने ले लिया और अपना जीवन वैराग की ओर मोड़ दिया। उनके इस
वैराग के पीछे किसी और प्रेरणा से ज्यादा उनके घर और समाज का माहौल जिम्मेवार लगता
है।
अगर उनके बोलने के ढंग को देखा जाए तो ऐसा लगता है, जैसे या
तो वे डिप्रेशन में हैं या फिर काफी ज्यादा नशे में होते हैं। हो सकता है दोनों
बातें गलत हों या फिर दोनों बातें सही हों। अगर सही हैं तो फिर इसके लिए जिम्मेवार
कौन है? ऊपर ही हम चर्चा कर चुके हैं कि उनके घर का माहौल बचपन से ही काफी खराब
रहा था। पिता माँ को बहुत ज्यादा पीटते थे। क्या हमारे घर का माहौल ऐसा होना
चाहिए? आप कल्पना कीजिए कि हमारे समाज के आधे परिवारों का माहौल अभय सिंह के घर
जैसा हो जाए और उस घर के आधे बच्चे भी वही निर्णय ले लें, जो अभय सिंह ने लिया है
तो हमारे समाज की स्थिति क्या होगी? जिस सनातन के रक्षा की बात करते हम थकते नहीं,
उसी सनातन धर्म का हरेक बच्चा अगर वैराग का रास्ता चुन ले तो फिर हमारे धर्म और समाज
की हालत क्या होगी? एक काफी प्रसिद्ध लोकोक्ति है कि ‘भगत सिंह पड़ोस के घर में ही
पैदा हों तो अच्छे लगते हैं’। हमें IITian बाबा इसीलिए अच्छे लग रहे हैं
क्योंकि वो हमारे घर के नहीं हैं।
उनके कुछ इंटरव्यू से यह बात तो स्पष्ट है कि अभय ने
भिन्न-भिन्न विषयों का काफी गहराई से अध्ययन किया है और उनमें काफी ज्ञान भरा हुआ
है। वो अक्सर अध्यात्म को विज्ञान से जोड़ने की बात करते दिखाई देते हैं। उनका कहना
कि हरेक विषय एक-दूसरे से लिंक्ड है और हमें इस बात पर चर्चा करनी चाहिए। इस बात से
मैं भी बहुत हद तक सहमत हूँ। इसे एक छोटे-से उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। बताया
जाता है कि शून्य की खोज आर्यभट ने की थी और इसके संकेत की खोज 628 ई. में ब्रहमगुप्त
ने की थी। कुछ विद्वानों का यह मानना है कि यह शून्य बौद्ध दर्शन के शून्यवाद से प्रेरित
था। अर्थात उन विद्वानों ने दर्शन और गणित का आपस में संबंध दर्शाया है। कुछ ऐसी ही
बातें करते IITain बाबा नजर आते हैं। उनका कहना है कि देश-विदेश से वैज्ञानिक,
दर्शनशास्त्री, धर्मज्ञ, राजनेता आदि इस महाकुंभ में आयें और अपने क्षेत्र का ज्ञान
दूसरे क्षेत्र के लोगों के साथ बाटें; अपने-अपने तर्क रखें और फिर सभी के कनेक्शन को
समझें। महाकुंभ का असली मतलब उनके लिए यही है। उन्होंने बताया कि वो स्वयं भी सभी लोगों
से बात करने और उनके विचार जानने ही कुम्भ में आए थे लेकिन जब से वो फेमस हो गए हैं
तब से उनका किसी से बात करना आसान नहीं रह गया है। इस मामले में उनका विजन और उनका
ज्ञान काफी उच्च श्रेणी का लगता है। उनका विजन काफी दूरदर्शी जान पड़ता है। वास्तव में
महाकुंभ एक स्नान से ज्यादा अगर ज्ञान के आदान-प्रदान का केंद्र हो जाए तो फिर बात
ही क्या हो! खैर...
अगर वो बाबा नहीं होते तो उनका समाज में क्या योगदान होता? उन्होंने
आईआईटी से शिक्षा ली है और अन्य विषयों की भी जानकारी उनकी काफी अच्छी है। तो मेरी
समझ तो यह कहती है कि अगर वो तकनीकी क्षेत्र में बने रहते तो शायद उनका योगदान समाज
और मानव जाति के लिए ज्यादा होता। अगर हम अपने देश के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम
की बात करें तो हम देखते हैं कि उन्होंने शादी नहीं की, सांसारिक जीवन में रहे और अपने
ज्ञान का पूरा फायदा हमारे समाज को देकर गए। अगर अभय सिंह विदेश में रहकर भी कोई रिसर्च
करते या तकनीक में कोई योगदान देते तो वो भी मानव कलयाणार्थ ही होता। अभी उनका विजन
तो काफी अच्छा है लेकिन वो आम लोग, मीडिया और सोशल मीडिया के लिए एक मेटेरियल से ज्यादा
नहीं हैं।
अब अंतिम प्रश्न पर बात करते हैं। क्या अभय सिंह बाकी बाबाओं
से अलग हैं? इसका जवाब है हाँ बिल्कुल वो उन बाबाओं से अलग हैं जो अपने आप को काफी
ज्ञानी और सनातन का ध्वजवाहक बोलते हैं। ऐसे बाबा आजकल न सिर्फ अपनी बातों से गंगा-जमुना
तहजीब वाले देश में नफरत फैलाने की कोशिश करते नजर आते हैं, बल्कि तुरंत प्रसिद्धि
पा लेने की भी ललक उनमें खूब नजर आती है। ऐसे बाबा या उनकी औडियो क्लिप आपको आमतौर
पर इन्फ़लुनसर्स की रील्स में देखने को मिल जाती होगी। हाँ अभी भी बहुत सारे धर्मपरायण
साधु हैं, जो नेपथ्य में रहकर सनातन की विचारधारा को प्रचारित करना अपना मूल कर्तव्य
समझते हैं। लेकिन तत्काल प्रसिद्धि और धर्म के नाम पर ऊल-जुलूल बातें करने वाले धर्मगुरुओं
की कमी आज किसी भी धर्म में नहीं है। अभय सिंह को मैंने एक इंटरव्यू में बोलते सुना
कि आप मेरी बातें, मेरे विजन की बात करो न, आप क्यों मेरी बात लेकर बैठ जाते हो! लेकिन
सच्चाई तो यह है कि हर कोई उन्हें ही देखना चाहता है, उनके विजन में किसी को कोई दिलचस्पी
नहीं है; इसीलिए मीडिया वाले भी उनकी ही बातें कर रहे हैं न कि उनके विजन की।
तो कुल मिलकर यही कहा जा सकता है कि एक बहुत ही ज्यादा शिक्षित
और ज्ञान से आप्लावित व्यक्ति जो किसी और जगह रहकर समाज को काफी कुछ दे सकता था, वो
अपने घर के कलुषित माहौल के कारण वैराग के मार्ग पर चला गया और उस मार्ग पर भी अगर
थोड़ा बहुत कुछ वो योगदान दे सकता था तो उस संभावना को मीडिया कुचलती नजर या रही है।
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